Main Points In Hindi (मुख्य बातें – हिंदी में)
यहाँ हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक खेती के बढ़ते प्रचलन के प्रमुख बिंदु दिए गए हैं:
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फसलों का रासायनिक उपयोग समाप्त: राज्य के कई किसान रासायनिक और कीटनाशकों के बिना फसल उगाने की दिशा में तेजी से बढ़ रहे हैं, जिससे उनकी आय में वृद्धि हुई है।
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उच्च आय और कम लागत: राम सुभाष पलवार जैसे किसानों ने प्राकृतिक खेती अपनाने के बाद अपने उत्पादन की लागत को 6 गुना घटा दिया है और इसकी बिक्री से अच्छी आय प्राप्त कर रहे हैं। वे प्रति वर्ष लगभग 1.5 लाख रुपये कमा रहे हैं।
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सरकार का समर्थन: हिमाचल प्रदेश सरकार प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को विभिन्न योजनाओं के माध्यम से सब्सिडी प्रदान कर रही है।
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भूमि और पर्यावरण का संरक्षण: प्राकृतिक खेती से भूमि की उर्वरता में वृद्धि हुई है और रासायनिक खेती के कारण होने वाले स्वास्थ्य हानि के प्रभाव को कम किया जा रहा है।
- कृषि में विविधता: अषा राम सुभाष पलवार जैसे किसान विभिन्न प्रकार की फसलों की खेती कर रहे हैं, जैसे गेहूं, मटर, फलियाँ, और अनार, जिससे उनकी आय के स्त्रोतों में विविधता आई है।
Main Points In English(मुख्य बातें – अंग्रेज़ी में)
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Shift Towards Natural Farming: Farmers in Himachal Pradesh are increasingly adopting natural farming practices, growing crops without chemicals or pesticides, which is contributing to higher incomes due to better market prices for organically grown produce.
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Success Story of Asha Ram Subhash Palekar: Asha Ram Subhash Palekar, a farmer from Narauli village, has embraced natural farming since 2018, using cattle dung instead of chemicals and cultivating various crops such as wheat, peas, and pomegranates, leading to significant income increases.
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Financial Benefits: Palekar reports a drastic reduction in input costs from approximately ₹22,000-25,000 to just ₹3,000-4,000 per year after switching to natural farming, significantly enhancing his profitability.
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Government Support for Natural Farming: The Himachal Pradesh government is promoting natural farming by providing subsidies and support through various schemes, encouraging more farmers to adopt sustainable practices.
- Environmental and Soil Health Improvement: The transition to natural farming not only benefits farmers economically but also improves soil health and increases the population of beneficial insects, which are crucial for maintaining biodiversity and ecological balance.
Complete News In Hindi(पूरी खबर – हिंदी में)
हिमाचल प्रदेश में किसान अब प्राकृतिक खेती की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं। राज्य में कई किसान ऐसे हैं जो बिना रसायनों और कीटनाशकों के फसलें उगाते हैं। इससे किसानों की आय भी बढ़ रही है, क्योंकि जैविक रूप से उगाई गई फसलों की कीमत रासायनिक खेती की तुलना में बहुत अधिक होती है। इनमें से एक किसान हैं राम सुभाष पालिकर, जो 5.5 बिघा जमीन पर प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। वे अपने खेतों में रसायनों के बजाय गोबर का उपयोग करते हैं। उनका कहना है कि सभी किसानों को प्राकृतिक तरीके से ही खेती करनी चाहिए। यह मिट्टी और पर्यावरण के लिए भी अच्छा है। खास बात यह है कि प्राकृतिक खेती शुरू करने के बाद, उनके खर्च में रासायनिक खेती की तुलना में 6 गुना कमी आई है।
इसी तरह, हिमाचल प्रदेश सरकार भी प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रही है। इसके तहत, सरकार किसानों को कई योजनाओं के जरिए सब्सिडी देती है। सुभाष पालिकर मंडी जिले के नरोली गांव के निवासी हैं। वे 2018 से प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। उनका कहना है कि खेती में रसायनों के उपयोग से अनाज प्रभावित हो रहा है, जिससे लोगों की सेहत खराब हो रही है। साथ ही, मिट्टी की उर्वरता भी कमजोर हो रही है। यही कारण है कि सुभाष पालिकर का रुख प्राकृतिक farming की ओर हुआ।
सुभाष उगाते हैं ये फसलें
द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, पालिकर ने सोलन स्थित यशवंत सिंह परमार बागवानी और वानिकी विश्वविद्यालय के तहत ATMA प्रोजेक्ट के तहत प्राकृतिक खेती में प्रशिक्षण लिया और फिर अपने गांव आकर काम शुरू किया। आज वे प्राकृतिक खेती की तकनीकों का उपयोग करके गेहूं, मटर, दालें, मक्का, पारंपरिक अनाज, गोबी, सरसों, जौ और अनार उगा रहे हैं। उन्होंने जो अनार की किस्में लगाई हैं, उनमें मृदुला, कंदारी, कंदारी काबुली और Seedless डोलका शामिल हैं।
एक साल में कितना मुनाफा
खास बात यह है कि वे अपने स्थानीय कर्सोग बाजार में प्राकृतिक अनार बेचते हैं, जिससे उन्हें इस फसल से सालाना 80,000 से 90,000 रुपये की आय होती है। अन्य फसलों को मिलाकर उनकी कुल आय लगभग 1.5 लाख रुपये प्रति वर्ष है।
पहले से कम लागत
आशा राम ने बताया कि प्राकृतिक खेती अपनाने से पहले, उन्हें रासायनिक खेती पर हर साल लगभग 22,000-25,000 रुपये खर्च करने पड़ते थे। अब यह लागत सिर्फ 3,000-4,000 रुपये रह गई है। इस बदलाव से मिट्टी की सेहत में सुधार हुआ है और उनके खेतों में लाभकारी कीड़ों की संख्या भी बढ़ गई है। उनके अनुसार, ATMA प्रोजेक्ट ने उन्हें अपने गाय के लिए स्थायी शेड बनाने और Resource Centre स्थापित करने के लिए अनुदान दिया है।
Complete News In English(पूरी खबर – अंग्रेज़ी में)
In Himachal Pradesh, the inclination of farmers towards natural farming is increasing rapidly. There are many farmers in the state who are growing crops without the use of chemicals and pesticides. This has also increased the income of farmers, because the price of grains grown organically is much higher than that of chemically grown grains. One of these farmers is Ram Subhash Palekar, who is doing natural farming on 5.5 bighas of land. They use cattle dung instead of chemicals in their fields. According to them, all farmers should do farming in natural way only. It is also good for the soil and the environment. The great thing is that after starting natural farming, the input cost has reduced by 6 times as compared to chemical farming.
Similarly, Himachal Pradesh government is promoting natural farming. For this, it gives subsidy to farmers through many schemes. Such Asha Ram Subhash Palekar is a resident of Narauli village of Mandi district. He has been doing natural farming since 2018. They say that due to the use of chemicals in farming, it is affecting the grains also, due to which the health of the people is deteriorating. Besides, the fertility of the soil is also weakening. This is the reason why Asha Ram Subhash Palekar’s interest moved towards natural farming.
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Subhash is cultivating these crops
According to The Tribune report, Palekar took training in natural farming under the ATMA project at Yashwant Singh Parmar Horticulture and Forestry University in Solan and then came to the village and started his work. Today they are cultivating wheat, peas, pulses, maize, traditional grains, cauliflower, mustard, barley and pomegranate using natural farming techniques. The varieties of pomegranate he has planted include Mridula, Kandhari, Kandhari Kabuli and Seedless Dolka.
earn so much profit in a year
The special thing is that they sell naturally grown pomegranates in their local Karsog market, due to which they earn an annual income of Rs 80,000 to 90,000 from this crop alone. Including other crops, their total income is about Rs 1.5 lakh per year. It’s been a year.
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Input costs lower than before
Asha Ram told that before adopting natural farming, she had to spend about Rs 22,000-25,000 annually on chemical farming. Now this cost has come down to just Rs 3,000-4,000. This change has also improved the health of the soil and increased the number of beneficial insects in their fields. According to him, the ATMA project has given him a grant to build a permanent shed for his cow shed and set up a resource centre.