Main Points In Hindi (मुख्य बातें – हिंदी में)
यहाँ लेख के मुख्य बिंदु दिए गए हैं:
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जलवायु संकट और स्वास्थ्य पर प्रभाव: भारत में जलवायु संकट से बढ़ती मृत्यु दर, गर्मी से जुड़ी बीमारियों में वृद्धि, और वेक्टर जनित बीमारियों के प्रसार जैसी गंभीर समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं, जिससे स्वास्थ्य सेवा पर दबाव पड़ रहा है।
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स्वास्थ्य सेवा संरचना की चुनौतियाँ: भारत में बुनियादी स्वास्थ्य सेवा ढांचे की कमी, जैसे कि अस्पतालों के लिए बढ़ते जलवायु जोखिम, स्थिति को और जटिल बनाती है। अध्ययन के अनुसार, जलवायु संकट के कारण सदी के अंत तक 10 में से 1 अस्पताल को बंद होने का खतरा है।
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जलवायु अनुकूलन रणनीतियाँ: लेख में विभिन्न अनुकूलन रणनीतियों का उल्लेख किया गया है, जैसे कि लचीला बुनियादी ढांचा, स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों का प्रशिक्षण, प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ, और विश्वसनीय आपूर्ति श्रृंखलाएँ।
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वित्तीय संसाधनों की कमी: संयुक्त राष्ट्र के रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक जलवायु वित्त का केवल 0.5% स्वास्थ्य क्षेत्र को मिलता है, जिससे स्वास्थ्य सेवा में आवश्यक निवेश की कमी हो रही है।
- समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता: स्वस्थ्य सेवा सिस्टम को मजबूत बनाने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है, जिसमें नीति, निवेश प्राथमिकताएँ, सहयोग और मापदंडों का समावेश शामिल है।
Main Points In English(मुख्य बातें – अंग्रेज़ी में)
Here are the main points from the article titled "Invest in climate adaptation for better health care":
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Impact of Climate Crisis on Public Health: The climate crisis poses severe threats to public health in India, leading to increased mortality rates, a surge in heat-related illnesses, and the spread of vector-borne diseases. In 2017, India experienced 9.7 million deaths attributable to health crises exacerbated by climate change.
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Vulnerability of Health Infrastructure: The weakness of healthcare infrastructure compounds the problem, with a significant percentage of hospitals at high risk of being affected by extreme weather events. By the end of the century, 1 in 10 hospitals in India may be fully or partially closed due to climate impacts.
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Adoption of Adaptation Strategies: Various adaptation strategies can significantly enhance healthcare readiness and resilience. These include building resilient infrastructures, training healthcare professionals for climate-related emergencies, strengthening early warning systems for health threats, and securing reliable supply chains for essential medical supplies.
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Need for Increased Climate Financing: Current climate financing for the healthcare sector is grossly inadequate, with just 0.5% of global climate finance reaching this area. A comprehensive approach involving diverse financial tools, including philanthropic, blended, and impact investments, is advocated to close the resource gap.
- Multifaceted Approach Required: Strengthening healthcare systems in the face of climate change necessitates a multidimensional strategy, involving the development of supportive policies, strategic investment priorities in critical areas like resilient infrastructure and early warning systems, and fostering collaboration among stakeholders to enhance adaptation efforts.
These points collectively highlight the urgent need for innovative solutions and funding mechanisms to address the intersection of climate change and healthcare in India.
Complete News In Hindi(पूरी खबर – हिंदी में)
जलवायु संकट और सार्वजनिक स्वास्थ्य: समाधान की दिशा में कदम
लेखक: द्वाराअरविंदन श्रीनिवासन, माधविका बाजोरिया
तारीख: 26 सितंबर, 2024
परिचय
भारत में जलवायु संकट का प्रभाव तेजी से बढ़ता जा रहा है, जिसका प्रत्यक्ष असर सार्वजनिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। बढ़ती मृत्यु दर, गर्मी से संबंधित बीमारियों में वृद्धि, और वेक्टर जनित रोगों का फैलाव, ये सभी देश की स्वास्थ्य प्रणाली की स्थिति को गंभीरता से प्रभावित कर रहे हैं। 2017 में भारत में लगभग 9.7 मिलियन मौतें और 486 मिलियन विकलांगता-समायोजित जीवन वर्ष (डीएएलवाई) दर्ज किए गए थे, जो इस समस्या की गम्भीरता को दर्शाते हैं।
स्वास्थ्य सेवा ढांचे की कमज़ोरी
स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे की कमज़ोरी इसे और भी चुनौतीपूर्ण बना रही है। 2023 की एक रिपोर्ट के अनुसार, [XDI ग्लोबल हॉस्पिटल इंफ्रास्ट्रक्चर] में दिखाया गया है कि दक्षिण-पूर्व एशिया में चरम मौसम की घटनाओं का सबसे अधिक खतरा अस्पतालों पर है। इससे यह स्पष्ट होता है कि जलवायु संकट के कारण, सदी के अंत तक भारत में 10 में से एक अस्पताल पूर्ण या आंशिक रूप से बंद होने के जोखिम में है।
अनुकूलन रणनीतियों की आवश्यकता
हालांकि स्थिति गंभीर है, लेकिन सुधार की संभावनाएं भी हैं। स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की तैयारी और लचीलेपन में सुधार के लिए कुछ महत्वपूर्ण अनुकूलन रणनीतियों को अपनाने की आवश्यकता है:
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लचीला बुनियादी ढांचा: अस्पतालों और क्लीनिकों को बढ़ती जलवायु आपदाओं का सामना करने के लिए डिज़ाइन किया जाना चाहिए। इसमें फटने वाली गर्मी की लहरों और बाढ़ से सुरक्षित रहने के लिए उपयुक्त सामग्रियों का चुनाव शामिल होगा।
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प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण: स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों को जलवायु-प्रभावित स्वास्थ्य आपात स्थितियों का प्रबंधन करने के लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता है।
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प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों को मजबूत करना: जलवायु-संवेदनशील स्वास्थ्य जोखिमों की पहचान करना और समय पर कार्रवाई करना आवश्यक है।
- विश्वसनीय आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुरक्षित करना: जलवायु संकट आवश्यक चिकित्सा आपूर्ति को प्रभावित कर सकता है।
वित्तीय संसाधनों की कमी
स्वास्थ्य सेवा में जलवायु वित्त की तत्काल आवश्यकता है। 2023 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा जारी एक रिपोर्ट से पता चला है कि वैश्विक जलवायु वित्त का केवल 0.5% स्वास्थ्य क्षेत्र तक पहुँचता है। इसे सुधारने के लिए, सामाजिक निवेश और विभिन्न प्रकार के वित्तीय साधनों को एकीकृत रूप से लागू करने की आवश्यकता है, जिसमें परोपकार और प्रभाव निवेश शामिल हैं।
राजनीतिक और नियामक ढांचे
एक मजबूत स्वास्थ्य सेवा प्रणाली सुनिश्चित करने के लिए, नीति और नियामक ढांचे का विकास अत्यावश्यक है। सरकार को ऐसी नीतियों का निर्माण करना चाहिए जो जलवायु-अनुकूल स्वास्थ्य समाधानों में निवेश को प्रोत्साहित करें और संसाधनों का उचित आवंटन करें।
सहयोग का महत्व
सभी स्तरों पर सहयोग बेहद महत्वपूर्ण है। अनुसंधान, सहयोग, और हितधारकों की भागीदारी अनुकूलन प्रयासों के प्रभाव को बढ़ा सकती है।
निष्कर्ष
जलवायु संकट भारत में स्वास्थ्य सेवा के लिए एक गंभीर खतरा है। उचित अनुकूलन रणनीतियों और वित्तीय संसाधनों को प्राथमिकता देने से हम एक लचीला स्वास्थ्य सेवा प्रणाली का निर्माण कर सकते हैं, जो लाखों लोगों के स्वास्थ्य और कल्याण की रक्षा करती है।
इस लेख के द्वारा, लेखक न केवल जलवायु संकट के प्रभावों की गंभीरता को उजागर करते हैं बल्कि यह भी सुझाव देते हैं कि इसके समाधान के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। यह एक ऐसा समय है जब हमें एकजुट होकर जलवायु और स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
Complete News In English(पूरी खबर – अंग्रेज़ी में)
Summary of the Article by Aravindan Srinivasan and Madhavika Bajoria on Climate Crisis and Public Health in India
The article written by Aravindan Srinivasan, Executive Director of Climate Action, and Madhavika Bajoria, Executive Director of AVPN’s Health Impact, addresses the impending climate crisis in India and its severe effects on public health. The authors highlight alarming statistics: in 2017, India faced 9.7 million deaths due to health issues, contributing significantly to the burden of diseases measured in Disability-Adjusted Life Years (DALYs), which totaled 486 million.
Current Public Health Threats
The article outlines the threats posed by the climate crisis, which include rising mortality rates, increased heat-related illnesses, and the spread of vector-borne diseases. These challenges not only devastate individual lives but also threaten livelihoods and contribute to the overall burden of disease. The inadequacy of healthcare infrastructure exacerbates these issues. According to the 2023 XDI Global Hospital Infrastructure Physical Climate Risk Report, South East Asia has the highest percentage of hospitals at risk from extreme weather events, with projections suggesting that one in ten hospitals in India may face closure by the end of the century due to climate impacts.
The Need for Stronger Health Systems
To combat these challenges, the authors underscore the urgent necessity for innovative solutions and robust financing mechanisms to enhance healthcare systems’ resilience to climate impacts. They propose various adaptation strategies to improve healthcare preparedness and sustainability:
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Building Resilient Infrastructure:
- Hospitals and clinics need to be designed to withstand extreme weather conditions like heatwaves and floods. This includes the use of heat-resistant materials, elevating structures in flood-prone areas, and investing in renewable energy sources to ensure uninterrupted medical care. Currently, 9% of Primary Health Centers (PHCs) in India lack electricity, and about 41% experience unreliable grid connections.
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Training and Capacity Building:
- Health professionals require specialized training to effectively manage climate-related health emergencies. Given that 65% of India’s population resides in rural areas, but only one-third of healthcare resources are located there, telemedicine could become a crucial tool for extending healthcare access to remote regions during natural disasters.
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Strengthening Early Warning Systems:
- Early detection of climate-sensitive health threats, like outbreaks of mosquito-borne diseases, is essential for timely intervention to minimize health impacts.
- Securing Reliable Supply Chains:
- The climate crisis can disrupt essential medical supply chains. Innovations such as improving cold chain logistics for vaccine distribution and utilizing drones for delivery in remote areas (as seen with initiatives in Japan and India) can be significant solutions.
Financial Gaps and Solutions
Despite the pressing need for climate finance in healthcare, the current situation is dire. According to the UN Environment Program’s Adaptation Gap Report 2023, only about 0.5% of global climate finance reaches the health sector, leaving a substantial gap between needs and resources.
The authors advocate for a capital continuity approach, which encompasses a spectrum of financial instruments, from philanthropy and blended finance to impact investments. This approach not only involves monetary capital but also intellectual capital (research and knowledge sharing) and human capital (technical assistance). Such a holistic strategy can streamline resources across different lifecycle stages of organizations while fostering a more integrated approach to social investment.
Policy Recommendations
To ensure a robust healthcare system amidst climate change, a multi-dimensional approach is essential:
- Policy and Regulatory Frameworks: The government needs to develop policies encouraging investment in climate-resilient healthcare solutions.
- Investment Priorities: Strategic allocation of resources towards sectors that exert the most significant influence on climate and health, including resilient infrastructure, early warning systems, and climate-smart health technologies, is crucial.
- Collaboration is Key: Coordination in research, advocacy, and stakeholder engagement will enhance the effectiveness of adaptation efforts.
- Importance of Metrics: Incorporating healthcare metrics into existing climate funds and vice versa is vital for developing a more comprehensive climate action plan.
Conclusion
The climate crisis presents a significant threat to public health in India. By prioritizing adaptation strategies and aligning financial resources effectively, India can build a more resilient healthcare system that safeguards the health and wellbeing of millions across the country. The authors emphasize the importance of a collaborative approach to maximize impact and address the critical challenges posed by the climate crisis on health care in India.