Experts dismiss fears of a conspiracy behind attacks in India. (विशेषज्ञों ने भारत पर हमलों की साजिशों को खारिज किया।)

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Main Points In Hindi (मुख्य बातें – हिंदी में)

  1. हमलों की घटनाएँ: उत्तर भारत के बहराइच जिले में पिछले कुछ महीनों में जंगली जानवरों के हमलों के कारण 10 लोगों की मौत हुई है, जिनमें अधिकांश बच्चे हैं, और 35 अन्य लोग घायल हुए हैं।

  2. भेड़ियों का आरोप: वन विभाग ने भारतीय ग्रे वुल्फ (कैनिस ल्यूपस पैलिप्स) को इन हमलों के लिए जिम्मेदार ठहराया है, जबकि वैज्ञानिकों का कहना है कि इस दावे के समर्थन में कोई ठोस सबूत नहीं हैं।

  3. संरक्षणवादियों की चिंताएँ: संरक्षणवादी और पारिस्थितिकीविद् यह बताते हैं कि भेड़ियों को "हत्यारा" कहना गैर-जिम्मेदाराना है, क्योंकि कोई भी आनुवंशिक प्रमाण या स्पष्ट पहचान नहीं की गई है। भेड़ियों की संख्या पहले से ही कम है और उन पर कोई भी कार्रवाई उन्हें और अधिक संकट में डाल सकती है।

  4. जंगली कुत्तों की संकर नस्ल: विशेषज्ञों का मानना है कि हमलावर जानवर भेड़िया-जंगली कुत्तों की संकर नस्ल हो सकते हैं, जो मनुष्यों के आसपास अधिक साहसी हैं।

  5. मानव-वन्यजीव संबंधों का पुनर्विचार: हाल की घटनाओं से संकेत मिलता है कि संरक्षित क्षेत्रों के बाहर मानव-वन्यजीव संबंधों को समझने और बेहतर तरीके से प्रबंधित करने की आवश्यकता है।

Main Points In English(मुख्य बातें – अंग्रेज़ी में)

Here are the main points from the article:

  1. Rising Human-Wildlife Conflicts: The Bahraich district of North India has witnessed alarming incidents of wildlife attacks, resulting in the deaths of ten people, mostly children, and injuries to 35 others over the past few months.

  2. Attribution to Indian Grey Wolves: Local forest officials have attributed the attacks to Indian grey wolves, citing drone footage and observations of wolf packs in the area. However, scientists argue that there is insufficient evidence to conclusively blame the wolves for the attacks.

  3. Lack of Evidence Supporting Wolf Culprit: Conservationists emphasize that there is no DNA evidence, photographs, or clear tracks demonstrating that wolves are responsible. They caution against labeling wolves as "killers" without genetic testing and supporting evidence.

  4. Endangered Species Status: The Indian grey wolf is a threatened subspecies, with an estimated population of fewer than 3,000 individuals. Experts warn that any action against wolves could severely threaten their already dwindling numbers.

  5. Need for Improved Human-Wildlife Management: While the specific attacking animals remain unidentified, experts suggest that understanding and managing human-wildlife interactions outside protected areas is crucial, as hybrid wolf-dog populations may be more emboldened around humans, contributing to the problem.


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Complete News In Hindi(पूरी खबर – हिंदी में)

उत्तर भारत के बहराइच जिले में हाल ही में जंगली जानवरों के हमलों की घटनाएं चिंताजनक रूप से बढ़ी हैं। इन हमलों में दस लोग, जिनमें अधिकतर बच्चे शामिल हैं, मारे गए हैं और 35 अन्य घायल हुए हैं। गांव वाले और वन अधिकारी इन हमलों का जिम्मेदार भारतीय ग्रे भेड़िए (कैनिस ल्यूपस पैलिप्स) ठहरा रहे हैं। वन विभाग ने क्षेत्र में भेड़ियों के झुंडों की जानकारी और ड्रोन फुटेज के आधार पर यह दावा किया है कि भेड़िए ही हमलों के लिए दोषी हैं। उसके बगैर, हाल ही में हुई एक ताज़ा घटना में 11 सितंबर को दो बच्चों और एक महिला पर हमला हुआ।

हालांकि, वैज्ञानिक इस बात पर सवाल उठा रहे हैं। मांसाहारी संरक्षणवादी वाईवी झाला ने कहा कि भेड़ियों को दोषी ठहराने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं हैं, न ही डीएनए सबूत है, न ही तस्वीरें, और न ही भेड़ियों के पैरों के निशान। बेंगलुरु में स्थित अशोक ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन इकोलॉजी एंड एनवायरनमेंट (एटीआरईई) के पारिस्थितिकी विज्ञानी अबी तमीम वनक ने कहा कि बिना आनुवंशिक परीक्षण के भेड़ियों को ‘हत्यारा’ कहना या उनके बारे में भड़काऊ भाषा का इस्तेमाल करना गैर-जिम्मेदाराना है।

भारतीय भेड़िया एक लुप्तप्राय उप-प्रजाति है, जिसकी संख्या 3,000 से कम मानी जाती है। यह जानवर आमतौर पर शुष्क सवाना घास के मैदानों में पाए जाते हैं, जो अब खेती के कारण घट रहे हैं, इसलिए भेड़िए अक्सर अपनी गाढ़ी का शिकार नहीं कर पाते हैं। वनक ने चेतावनी दी है कि भेड़ियों के खिलाफ किसी भी tipo की कार्रवाई उनकी आबादी के लिए घातक हो सकती है।

हालांकि, बहराइच जिले के हमलों से आतंक फैल गया है और स्थानीय लोगों ने जंगली कुत्तों, सियारों और भेड़ियों के खिलाफ प्रतिशोध में कार्रवाई की है। मीडिया ने इस स्थिति को और बिगाड़ते हुए भेड़ियों को खून के प्यासे जीव के रूप में पेश किया है, जबकि पारिस्थितिकीविदों का कहना है कि 1990 के दशक से अस्वस्थ भेड़ियों द्वारा मनुष्यों पर हमले का कोई मामला सामने नहीं आया है।

कुछ मनुष्य हत्या करने वाले जानवरों के बारे में यह सोचते हैं कि वे या तो पागल भेड़िये हैं या विकलांग भेड़िये जिन्हें खाना पकड़ने में मुश्किल हो रही है। एक और संभावना यह भी है कि हमलावर जानवर भेड़िया-जंगली कुत्तों की संकर नस्ल हो, जो मनुष्यों के करीब अधिक निडर और साहसिक होते हैं।

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हाल के हमलों के अध्ययन से पता चलता है कि हमें संरक्षित क्षेत्रों के बाहर मानव-वन्यजीव रिश्तों को बेहतर समझने और प्रबंधित करने की आवश्यकता है। इन घटनाओं ने यह भी सिद्ध कर दिया है कि “ऑपरेशन भेड़िया” ने मानव-वन्यजीव संघर्ष शमन में खामियों को उजागर किया है।

इस प्रकार, बहराइच की घटनाएं जंगली जानवरों से संबंधित लोगों के बीच डर पैदा कर रही हैं, जबकि वैज्ञानिक इसे एक जटिल स्थिति मानते हैं जिसके समाधान के लिए उचित शोध और प्रबंधन की आवश्यकता है।


Complete News In English(पूरी खबर – अंग्रेज़ी में)

In the Bahraich district of North India, a troubling series of wild animal attacks have occurred over the past few months, resulting in the deaths of ten people, primarily children, and injuring 35 others. Local villagers and forest officials have blamed Indian gray wolves (Canis lupus pallipes) for these attacks, but scientists argue that there is insufficient evidence to support this claim.

The forest department’s conclusion is based on the sighting of six wolf packs in the area and drone footage, which led to the capture and removal of these packs. However, soon after their removal, attacks occurred again on September 11, involving two children and a woman. Conservationists and ecologists stress that there is no conclusive evidence linking the Indian wolves to these incidents. Some, echoing the sentiment of wildlife conservationist YV Jhala, point out the absence of DNA evidence, photographs, or even tracks that would directly implicate the wolves.

The Indian wolf is a critically endangered subspecies, with an estimated population of just over 3,000 individuals. This canid prefers dry savannah grasslands, which have been largely converted into agricultural land, thereby forcing wolves to rely on livestock, often grazing out of sight. Ecologist Abhi Tamim Vanak emphasized that labeling wolves as “killers” without genetic testing is irresponsible.

Amidst the fear generated by the attacks in Bahraich, people unable to differentiate between canid species have taken retaliatory measures against wild dogs, jackals, and wolves. The sensational media coverage has portrayed wolves as bloodthirsty creatures, exacerbating the situation. Ecologists are in agreement that there have been no recorded instances of healthy wolves attacking humans since the 1990s; only a few cases have been linked to rabid wolves or animals that were incapacitated and unable to hunt.

An alternative hypothesis suggests that the attacking animal may be a hybrid between a wolf and wild dogs, which tend to be bolder and less fearful of humans. Iravati Majgaonkar, an ecologist from the Ashoka Trust for Research in Ecology and the Environment (ATREE), noted that hybrids have been observed in wolf packs in states like Maharashtra and Karnataka.

The identity of the attacking animal has not yet been determined, but experts have indicated that recent events highlight the necessity of better understanding and managing human-wildlife interactions outside protected areas. Overall, the situation reflects the gaps in “Operation Wolf” concerning human-wildlife conflict mitigation. The report brought forth by Aarti Menon and Nikhil Sahu seeks to underline the urgency of addressing these issues to prevent further incidents and ensure the conservation of the vulnerable wolf population while promoting coexistence with local communities.

By acknowledging the complexities of the human-wildlife relationship and advocating for thorough investigations into animal behavior, wildlife management practices can be improved, ensuring both human safety and ecological balance.



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